नई दिल्ली, 5 अक्टूबर 2025 – सोशल मीडिया पर आज एक हैशटैग ने तहलका मचा दिया है – #लठैत_आरक्षण_खत्म_करो। ये नारा सिर्फ ट्वीट्स तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि ये OBC आरक्षण व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां जातिगत समीकरण हमेशा आग उगलते रहते हैं, ये कैंपेन तेजी से फैल रहा है। लोग कह रहे हैं कि आरक्षण का फायदा कुछ ताकतवर जातियों को ही मिल रहा है, जबकि असली पिछड़े वर्ग किनारे पर धकेल दिए गए हैं। लेकिन सवाल ये है – क्या ये सिर्फ सोशल मीडिया की हवा है, या जमीन पर कुछ बड़ा बदलाव लाएगी?
कल से ही ये हैशटैग X पर ट्रेंड कर रहा है। सुबह होते ही सैकड़ों पोस्ट्स आ गए, जिनमें ज्यादातर यूजर्स OBC कोटे में यादव, कुर्मी और गुर्जर जैसी जातियों पर निशाना साध रहे हैं। इन्हें ‘लठैत’ कहकर तंज कसा जा रहा है – मतलब वो जो लाठी थामे दूसरों को दबाते हैं। एक पोस्ट में लिखा है, “60000 में से 19000 यादव! यादव आबादी सिर्फ 4%, लेकिन नौकरियों में 32% हिस्सा। कुम्हार, राजभर, निषाद का कोटा कहां गया?” ये आंकड़े बिहार जाति सर्वे 2023 से लिए गए हैं, जो दिखाते हैं कि OBC में कुछ जातियां ट्रैक्टर (41%), MLA सीटें (32%) और वाहनों के स्वामित्व तक में अपनी मजबूत पकड़ बना चुकी हैं।
ये गुस्सा नया नहीं है। बिहार चुनावों के करीब आते ही ये कैंपेन और तेज हो गया लगता है। एक यूजर ने लिखा, “ये ट्रेंड सिर्फ यादवों को बदनाम करने और OBC में फूट डालने के लिए है। बिहार चुनाव से ध्यान भटकाना चाहते हैं।” लेकिन ज्यादातर पोस्ट्स में लोग OBC वर्गीकरण की मांग कर रहे हैं – यानी पिछड़ों को उप-श्रेणियों में बांटो, ताकि कमजोर जातियों को उनका हक मिले। मध्य प्रदेश के OBC आरक्षण केस में कोर्ट को दी गई रिपोर्ट भी इसी की मिसाल है। इसमें कहा गया कि OBC का प्रतिनिधित्व शिक्षा संस्थानों में 34% है, फिर भी सरकार इसे बढ़ाने पर तुली है। उत्तर प्रदेश में तो हालात और गंभीर हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के नाम पर तंज कसे जा रहे हैं। एक पोस्ट में लिखा, “मोहन यादव के बिरादरी वाले दलितों को घोड़ी पर चढ़ने नहीं देते, फिर आरक्षण का हक क्यों?”
और अब इस बहस को नई धार मिली है ओमप्रकाश राजभर के ताजा पत्र से। 3 अक्टूबर को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के अध्यक्ष और यूपी सरकार में मंत्री राजभर ने सभी प्रमुख दलों के नेताओं – भाजपा के जेपी नड्डा, कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, बसपा की मायावती, आरजेडी के लालू प्रसाद, अपना दल की अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के संजय निषाद – को चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने 2001 की सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करने की मांग की, जो OBC के 27% कोटे को तीन हिस्सों में बांटने का सुझाव देती है: पिछड़ी जातियों के लिए 7%, सबसे पिछड़ी के लिए 9% और अति पिछड़ी के लिए 11%। राजभर ने कहा कि ये बदलाव आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों और सभी विभागीय भर्तियों में लागू हो। उन्होंने दलों से अपनी राय मांगी और चैलेंज किया कि अगर वे सामाजिक न्याय की बात करते हैं, तो इस पर खुलकर बोलें। बसपा-समाजवादी सरकारों पर भी निशाना साधा कि उन्होंने पहले सिफारिशें दबा दीं, जिससे कुछ ही जातियां फायदा उठा रही हैं। ये पत्र OBC वर्गीकरण की मांग को राजनीतिक पटल पर ला खड़ा कर दिया है।
सोशल मीडिया के अलावा, ये बहस बड़े मंचों तक पहुंच रही है। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2025 में अपनी ही कर्मचारियों के लिए SC/ST को 22.5% आरक्षण लागू किया, जो दिखाता है कि केंद्र स्तर पर बदलाव हो रहे हैं। लेकिन OBC के लिए क्रीमी लेयर की सख्ती की मांग तेज है। एक्टिविस्ट मोहित भारत जैसे लोग कहते हैं, “OBC आरक्षण पिछड़ों का है। कुछ SC/ST/EWS भी पिछड़े हैं, उन्हें भी OBC का फायदा दो।” ये सवाल उल्टा पड़ रहा है – अगर सबको सबका फायदा, तो व्यवस्था क्यों न बने आर्थिक आधार पर?
अब देखना ये है कि ये आंदोलन सड़कों पर उतरेगा या सिर्फ ऑनलाइन रहेगा। इतिहास गवाह है – मंडल कमीशन के बाद भी आरक्षण पर बहस रुकी नहीं। बिहार में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की सरकार के बीच OBC सर्वे पर टकराव चल रहा है। अगर #लठैत_आरक्षण_खत्म_करो जैसी मांगें जोर पकड़ लीं, तो 2025 के अंत तक OBC वर्गीकरण कानून बन सकता है। लेकिन याद रखें, आरक्षण सामाजिक न्याय का हथियार है, न कि किसी एक जाति का किला। असली बदलाव तब होगा, जब सबकी आवाज सुनी जाएगी, न कि सिर्फ चिल्लाने वाली की।
