
आज, 6 जुलाई 2025 को, उत्तर प्रदेश के मत्स्य पालन मंत्री और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद ने जलजात समुदायों (निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद आदि) को अनुसूचित जाति (SC) में शामिल करने की अपनी मांग को फिर से जोरदार तरीके से उठाया है। यह मांग लंबे समय से उनकी पार्टी का प्रमुख मुद्दा रही है, और आज के दिन देश भर में इस पर चर्चा और कार्यक्रम हो रहे हैं। डॉ. निषाद का कहना है कि यह मांग केवल आरक्षण की नहीं, बल्कि जलजात समुदायों के हक और सम्मान की लड़ाई है।
लखनऊ में रैली और प्रदर्शन का आयोजन
लखनऊ में आज निषाद पार्टी ने एक विशाल रैली का आयोजन किया, जिसमें हजारों कार्यकर्ता और जलजात समुदाय के लोग शामिल हुए। डॉ. संजय निषाद ने मंच से कहा, “हमारा समुदाय सालों से उपेक्षित है। 1961 के सेंसस मैनुअल में मझवार, तुरहा, और तरमाली पासी को अनुसूचित जाति में शामिल किया गया था, लेकिन बाद में हमें OBC में डाल दिया गया। यह अन्याय है।” उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से तुरंत इस मुद्दे पर कार्रवाई की मांग की। रैली में कार्यकर्ताओं ने मछुआ समाज के लिए अलग आयोग बनाने और जातीय जनगणना में सही गिनती की बात भी उठाई। सोशल मीडिया पर इस रैली की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसमें लोग “हक दो, आरक्षण दो” के नारे लगा रहे हैं।
मछुआ समुदाय के लिए नीतिगत मांगें
डॉ. निषाद ने हाल ही में मछुआ समुदाय के लिए कई नीतिगत मांगें उठाई हैं। मीरजापुर में एक संगोष्ठी में उन्होंने मत्स्य पालकों के लिए योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करने और मछुआ समुदाय के लिए आयोग बनाने की बात कही। उन्होंने मछुआ विजन डॉक्यूमेंट को सरकारी नीति का हिस्सा बनाने की मांग की, जिसमें मझवार, तुरहा, और 17 अन्य उपजातियों को SC में शामिल करने का प्रस्ताव है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में SC समुदायों को मत्स्य योजनाओं में 60% अनुदान मिलना चाहिए। इस मांग को लेकर निषाद पार्टी ने केंद्र सरकार से बातचीत शुरू की है, और गृह मंत्री अमित शाह ने इस पर सकारात्मक रुख दिखाया है। यह मांग जलजात समुदायों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
डॉ. संजय निषाद की इस मांग का उत्तर प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर पड़ रहा है। निषाद पार्टी, जो 2016 में बनी, अब पूर्वांचल में एक मजबूत ताकत बन चुकी है। गोरखपुर, संत कबीरनगर, और भदोही जैसे जिलों में जलजात समुदाय का वोट बैंक निर्णायक है। डॉ. निषाद ने 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं, और उनकी पार्टी पंचायत चुनाव में अकेले लड़ने की घोषणा कर चुकी है। उन्होंने कहा, “हमारा गठबंधन BJP के साथ लोकसभा और विधानसभा तक सीमित है। पंचायत चुनाव में हम अपनी ताकत दिखाएंगे।” इस मांग ने विपक्षी दलों को भी मजबूर किया है कि वे जलजात समुदाय के मुद्दों पर ध्यान दें। मायावती ने भी हाल ही में इस मुद्दे पर समर्थन जताया है।
भविष्य की राह और चुनौतियां
डॉ. निषाद की मांग को लागू करने में कई चुनौतियां हैं। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक इस पर अंतिम फैसला नहीं लिया है। 2016 में सपा सरकार ने जलजात समुदायों को SC में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन यह कोर्ट में रुका हुआ है। डॉ. निषाद का कहना है कि अगर उत्तराखंड में जलजात समुदाय को SC का दर्जा मिल सकता है, तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं? वे हस्ताक्षर अभियान और संवैधानिक अधिकार यात्रा जैसे कदम उठा रहे हैं। हालांकि, कुछ लोग इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं। फिर भी, जलजात समुदाय में इस मांग को लेकर उत्साह है, और यह मुद्दा 2027 के चुनावों में बड़ा प्रभाव डाल सकता है।