
लखनऊ: शहर की सड़कों पर जाम से परेशान लोगों के लिए एक ताजगी भरी हवा की तरह आई लखनऊ मेट्रो ने आज अपने 8 साल पूरे कर लिए हैं. 5 सितंबर 2017 को शुरू हुई इस सेवा ने पिछले सालों में लाखों लोगों की जिंदगी आसान बनाई है. आज मेट्रो डिपो में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए, जहां मेट्रो के सफर को याद किया गया और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा हुई. यह मेट्रो न सिर्फ परिवहन का साधन बनी है, बल्कि शहर के विकास की एक मिसाल भी है. गर्मी, बारिश या ठंड में बिना रुके चलने वाली यह ट्रेन अब लखनऊ वासियों की रोजमर्रा का हिस्सा बन चुकी है.
शुरुआत से अब तक का सफर
लखनऊ मेट्रो की कहानी 2008 से शुरू हुई, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे शहर के लिए एक बड़ा प्रोजेक्ट माना. दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन की मदद से योजना बनी और 2013 में लखनऊ मेट्रो रेल कॉरपोरेशन का गठन हुआ. निर्माण 2014 में शुरू हुआ और पहली लाइन ट्रांसपोर्ट नगर से चारबाग तक 8.5 किलोमीटर की दूरी पर 5 सितंबर 2017 को चालू हुई. दो साल बाद, 9 मार्च 2019 को इसे चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से मुंशी पुलिया तक बढ़ाया गया, जो अब कुल 23 किलोमीटर की लंबाई वाली रेड लाइन है. इस दौरान मेट्रो ने कई चुनौतियां झेलीं, जैसे निर्माण के समय सड़कों पर ट्रैफिक का प्रबंधन और कोविड महामारी के दौरान सेवाओं को जारी रखना. लेकिन हर बार यह मजबूत होकर उभरी.
उपलब्धियां जो गर्व की बात हैं
इन 8 सालों में लखनऊ मेट्रो ने 13 करोड़ यात्रियों को सफर कराया है. रोजाना औसतन 90 हजार लोग इसका इस्तेमाल करते हैं, जो शहर की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा है. 2024 में नए साल के पहले दिन रिकॉर्ड 1.3 लाख यात्रियों ने सफर किया, जो पहले के रिकॉर्ड को तोड़ता है. मेट्रो की सुरक्षा और सुविधाएं ऐसी हैं कि महिलाएं और बुजुर्ग बेझिझक यात्रा करते हैं. इसमें एयर कंडीशनिंग, सीसीटीवी और महिला कोच जैसी व्यवस्थाएं हैं. पर्यावरण के लिहाज से भी यह फायदेमंद है, क्योंकि इससे सड़कों पर गाड़ियां कम हुईं और प्रदूषण घटा. उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के पीआरओ हितेश चांदना कहते हैं, “पिछले आठ वर्षों में हमने यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने का पूरा प्रयास किया है. अब लोग अन्य साधनों की बजाय मेट्रो को चुनते हैं.” मेट्रो ने रोजगार भी दिए, हजारों लोगों को नौकरियां मिलीं और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिला.
वर्तमान स्थिति और चुनौतियां
आज मेट्रो 20 ट्रेनों के साथ चल रही है, जो एयरपोर्ट से मुंशी पुलिया तक जाती हैं. सुबह 6 बजे से रात 10:30 बजे तक सेवाएं हैं, और हर 5 मिनट में ट्रेन मिलती है. लेकिन शहर बढ़ रहा है, तो मेट्रो की पहुंच भी बढ़ानी जरूरी है. पुराने इलाकों में ट्रैफिक जाम एक बड़ी समस्या है, जहां मेट्रो अभी नहीं पहुंची. टिकटिंग में भी सुधार की गुंजाइश है, जैसे वन नेशन वन कार्ड और व्हाट्सएप से क्यूआर कोड टिकट. इन पर काम चल रहा है.
भविष्य की योजनाएं
मेट्रो का दूसरा चरण रोमांचक है. पिछले महीने केंद्र सरकार ने फेज-1बी को मंजूरी दी, जो 11.165 किलोमीटर का ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर है. यह चारबाग से बसंत कुंज तक जाएगा, जिसमें 12 स्टेशन होंगे – 7 अंडरग्राउंड और 5 एलिवेटेड. लागत 5,801 करोड़ रुपये है, और निर्माण अक्टूबर से शुरू हो सकता है. इससे अमीनाबाद, चौक, ठाकुरगंज जैसे घने इलाके जुड़ेंगे, साथ ही सिटी रेलवे स्टेशन और केजीएमयू मेडिकल कॉलेज. पूरा होने पर नेटवर्क 35 किलोमीटर का हो जाएगा, और रोजाना 1 से 1.5 लाख यात्री बढ़ सकते हैं. ट्रेनों की संख्या 25 तक बढ़ेगी, और अंतराल 3-4 मिनट का होगा. आगे फेज 2 और 3 में 8 नए रूट प्लान हैं, जो कुल नेटवर्क को 127 किलोमीटर तक ले जाएंगे. यह शहर को जाम मुक्त और आधुनिक बनाने में मदद करेगा.
लखनऊ मेट्रो ने 8 साल में साबित किया कि सही योजना से बड़ा बदलाव आ सकता है. यह न सिर्फ सफर आसान करती है, बल्कि शहर को जोड़ती है. आने वाले सालों में यह और मजबूत होगी, और लखनऊ को एक स्मार्ट सिटी बनाएगी. अगर आपने अभी तक मेट्रो में सफर नहीं किया, तो जरूर试 करें – यह शहर की नब्ज है.