
वाराणसी, 7 सितंबर 2025: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के तेलुगु विभाग के प्रमुख प्रोफेसर सीएस रामामूर्ति पर हुए उस दिल दहला देने वाले हमले का मामला अब नई मोड़ ले रहा है। लगभग डेढ़ महीने पहले हुई इस घटना ने न सिर्फ विश्वविद्यालय की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए थे, बल्कि अब जांच में सामने आया है कि हमले के पीछे का मास्टरमाइंड कासिम बाबू खुद बीएचयू में सहायक प्रोफेसर बनने की दहलीज पर था। पुलिस की जांच से पता चला है कि कासिम ने पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बुदाती वेंकटेश्वर लू के साथ मिलकर यह साजिश रची थी। यह खुलासा न सिर्फ आश्चर्यजनक है, बल्कि यह भी दिखाता है कि शैक्षणिक दुनिया में प्रतिस्पर्धा कितनी कड़वी हो सकती है।
घटना की शुरुआत 28 जुलाई 2025 को हुई, जब प्रोफेसर रामामूर्ति बीएचयू कैंपस में अपने दैनिक कामकाज में लगे थे। दो अज्ञात युवकों ने उन पर लोहे की रॉड से हमला कर दिया। हमलावरों ने इतनी बेरहमी से वार किए कि प्रोफेसर के दोनों हाथ टूट गए। वे खून से लथपथ हो गए और तुरंत ट्रॉमा सेंटर ले जाए गए, जहां उनका ऑपरेशन हुआ। प्रोफेसर ने खुद बताया था कि उन्हें समझ नहीं आया कि युवकों ने ऐसा क्यों किया। शुरुआती दिनों में पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला, और 24 घंटे बाद भी आरोपी फरार थे। इस घटना ने पूरे कैंपस में दहशत फैला दी। अगले दिन, 29 जुलाई को बीएचयू के गेट पर प्रोफेसरों और शिक्षकों ने जोरदार प्रदर्शन किया। उन्होंने सुरक्षा की मांग की और सड़कों पर धरना दिया।
पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच शुरू की। 13 अगस्त को बड़ा ब्रेकथ्रू आया, जब वाराणसी पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया। डीसीपी क्राइम सरवणन टी. के अनुसार, पूर्व एचओडी प्रो. वेंकटेश लू और मौजूदा एचओडी प्रो. रामचंद्रमूर्ति के बीच प्रशासनिक मसलों को लेकर गहरी अनबन थी। इसी तनाव के चलते प्रो. लू ने अपने पुराने छात्रों की मदद से प्रो. रामचंद्रमूर्ति को आतंकित करने की योजना बनाई। उन्होंने तेलंगाना से एक प्रोफेशनल शूटर को हायर किया था। एक आरोपी को मुठभेड़ में घायल अवस्था में पकड़ा गया, और उसके पास से तमंचा भी बरामद हुआ। आरोपियों ने कबूल किया कि उनका इरादा ‘हाफ मर्डर’ करने का था, यानी प्रोफेसर को बुरी तरह घायल करके उन्हें निष्क्रिय करना। लेकिन चमत्कार से प्रोफेसर बच गए।
जांच में सामने आया कि कासिम बाबू, जो प्रोफेसर लू का रिसर्च स्टूडेंट था, हमले का असली मास्टरमाइंड था। कासिम मैसूर यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर नहीं था, जैसा उसने दावा किया था। वहां वह सिर्फ एक प्रोजेक्ट पर काम करता था। लेकिन उसने अपने दस्तावेजों में इसे गलत तरीके से पोस्टडॉक्टोरल फेलोशिप (पीडीएफ) बता दिया, जिससे उसे 6 अतिरिक्त नंबर मिले। इसी वजह से वह बीएचयू के सहायक प्रोफेसर के इंटरव्यू के लिए टॉप-10 आवेदकों में शामिल हो गया था। लेकिन प्रोफेसर रामामूर्ति की अगुवाई वाली कमेटी ने जांच की तो कासिम का झूठ पकड़ा गया। तमिल विभाग के डॉ. जैक जगदीश भी इस कमेटी में थे। नामांकन रद्द होने से कासिम को गुस्सा आ गया, और उसने प्रोफेसर लू के साथ मिलकर बदला लेने की योजना बनाई।
इस खुलासे के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने कासिम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। प्रोफेसर रामामूर्ति ने हमले के 28 दिन बाद, यानी अगस्त के आखिर में ड्यूटी जॉइन की, लेकिन उनके हाथ अभी भी प्लास्टर में हैं। राजनीतिक हलकों में भी यह मामला गूंजा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने ट्रॉमा सेंटर जाकर प्रोफेसर से मुलाकात की और सुरक्षा की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में ऐसी घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।
यह मामला बीएचयू की आंतरिक राजनीति को भी उजागर करता है। तेलुगु विभाग में पदोन्नति और विभागाध्यक्ष बनने की होड़ ने इतनी नफरत पैदा कर दी कि कोई किसी की जान लेने पर उतर आया। पुलिस का कहना है कि जांच पूरी हो चुकी है और कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि कैंपस में सुरक्षा में इतनी लापरवाही क्यों है? यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले बीएचयू में हिंसा का साया कैसे पड़ गया। पुलिस और प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई और ऐसी वारदात न हो।