
बस्ती: उत्तर प्रदेश में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़ा कदम उठाया गया है. बस्ती जिले की कोतवाली पुलिस ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत राज्य का पहला मुकदमा दर्ज किया है. यह घटना 2 सितंबर 2025 को हुई, जब तीन ट्रांसजेंडर व्यक्ति बधाई मांगने गए थे और उनके साथ मारपीट और अपमान किया गया. पुलिस ने इस मामले में तीन आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है, जो ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण है. यह कदम दिखाता है कि कानून अब कागजों से निकलकर जमीन पर उतर रहा है, जहां ट्रांसजेंडर लोगों को समाज में बराबर सम्मान मिल सके.
घटना की पूरी कहानी
मामला बस्ती शहर के कोतवाली इलाके का है. ट्रांसजेंडर आरती किन्नर, महि और जूली पारंपरिक रूप से बधाई मांगने के लिए एक घर के पास खड़े थे. यह उनकी रोजी-रोटी का पुराना तरीका है, जहां जन्म या शादी जैसे खुशी के मौकों पर लोग उन्हें पैसे या उपहार देते हैं. लेकिन उस दिन, घर के मालिक त्रिभुवन शुक्ला और उनके दो बेटों ने उन्हें देखते ही गंदी गालियां दीं और लिंग भेदभाव वाली बातें कहीं. जब ट्रांसजेंडरों ने विरोध किया, तो आरोपियों ने उन पर हमला कर दिया. आरती के कपड़े फाड़ दिए गए, उनकी पर्स से 4 हजार रुपये और अन्य सामान छीन लिया गया. उनका मोबाइल फोन तोड़ दिया और जान से मारने की धमकी दी गई. महि और जूली ने बीच-बचाव करने की कोशिश की, तो उन्हें भी पीटा गया. ट्रांसजेंडर किसी तरह वहां से भागे और अपने गुरु को पूरी बात बताई.
आरती ने अगले दिन, 3 सितंबर को कोतवाली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने अपनी तहरीर में साफ लिखा कि यह हमला न सिर्फ शारीरिक था, बल्कि उनकी गरिमा और पहचान पर भी चोट था. पुलिस ने तुरंत मुकदमा दर्ज किया. आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 115(2) (शारीरिक पीड़ा पहुंचाना), 352 (मारपीट), 351(2) (धमकी), 324(4) (लूट) और ट्रांसजेंडर एक्ट की धारा 18(द) (ट्रांसजेंडर व्यक्ति की जान, सुरक्षा या स्वास्थ्य को खतरे में डालना) के तहत मामला बनाया गया है. पुलिस जांच कर रही है और आरोपियों की तलाश में जुटी है. अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि जल्द कार्रवाई होगी.
क्यों है यह पहला मुकदमा?
ट्रांसजेंडर सुरक्षा सेल की नोडल अधिकारी और सीओ रुधौली स्वर्णिमा सिंह ने पुष्टि की कि यह उत्तर प्रदेश में ट्रांसजेंडर एक्ट के तहत दर्ज होने वाला पहला मुकदमा है. 2019 में बना यह कानून ट्रांसजेंडर लोगों को भेदभाव, हिंसा और अपमान से बचाने के लिए है. इसमें पहचान प्रमाण-पत्र, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा और रोजगार के अधिकार शामिल हैं. लेकिन अब तक राज्य में इसका इस्तेमाल बहुत कम हुआ है, क्योंकि जागरूकता की कमी है और ट्रांसजेंडर समुदाय पुलिस के पास जाने से हिचकता है. यह मामला एक मिसाल बनेगा, जो अन्य पीड़ितों को आगे आने का हौसला देगा.
ट्रांसजेंडर समुदाय की चुनौतियां
उत्तर प्रदेश में ट्रांसजेंडर लोगों की संख्या हजारों में है, लेकिन वे अक्सर समाज के हाशिए पर रहते हैं. बधाई मांगना उनकी मुख्य कमाई है, लेकिन इसमें कई बार झगड़े हो जाते हैं. लोग उन्हें पैसे देने से मना कर देते हैं या अपमान करते हैं. कोविड महामारी के बाद उनकी स्थिति और खराब हुई, क्योंकि खुशी के मौके कम हो गए. सरकार ने ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड बनाया है, जो उन्हें स्किल ट्रेनिंग और आर्थिक मदद देता है. हाल ही में गोरखपुर, बस्ती और नोएडा में गरिमा गृह का विस्तार किया गया, जहां वे सुरक्षित रह सकते हैं और कानूनी मदद ले सकते हैं. लेकिन जमीन पर बदलाव धीमा है. विशेषज्ञों का कहना है कि पुलिस को संवेदनशील बनाना जरूरी है, ताकि ट्रांसजेंडर बिना डर के शिकायत कर सकें.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ और समुदाय
ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट कहते हैं कि यह मुकदमा एक शुरुआत है. “हमें खुशी है कि कानून अब काम कर रहा है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है,” एक स्थानीय एक्टिविस्ट ने बताया. पुलिस अधिकारियों का मानना है कि इससे समाज में जागरूकता बढ़ेगी और ट्रांसजेंडरों के खिलाफ अपराध कम होंगे. राज्य सरकार ने हाल में ट्रांसजेंडरों के लिए नई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कौशल विकास और स्वास्थ्य जांच कैंप. लेकिन असली सफलता तभी मिलेगी, जब समाज उन्हें बराबर का दर्जा दे.
यह घटना याद दिलाती है कि ट्रांसजेंडर भी इंसान हैं और उनके अधिकारों की रक्षा जरूरी है. बस्ती का यह मुकदमा पूरे प्रदेश के लिए सबक है – भेदभाव की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.