
अंबेडकरनगर, 13 सितंबर 2025: उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर जिले में पुलिस ने एक बड़े कारतूस तस्करी गिरोह का पर्दाफाश कर दिया है। यह कार्रवाई अगस्त के मध्य में शुरू हुई थी और अब तक की जांच से पता चला है कि यह गिरोह कई सालों से अवैध हथियारों की आपूर्ति कर रहा था। गिरोह के पांच सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि हजारों कारतूसों का काला कारोबार सामने आया है। यह घटना न सिर्फ स्थानीय अपराध को बढ़ावा दे रही थी, बल्कि पड़ोसी जिलों में भी फैल चुकी थी।
सब कुछ 15 अगस्त को शुरू हुआ, जब स्वतंत्रता दिवस के दिन हंसवर थाना क्षेत्र में पुलिस को एक युवक के पास अवैध पिस्टल मिली। नाम था अनुराग यादव, बसखारी का रहने वाला। हंसवर पुलिस और स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (एसओजी) ने उसे हिरासत में लिया। पूछताछ में अनुराग ने कबूल किया कि वह आजमगढ़ के अत्रौलिया निवासी ज्ञान चंद से कारतूस खरीदता था। पुलिस ने अनुराग के मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर ज्ञान चंद को हंसवर बुलाया, जहां उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसके पास से दो फर्जी शस्त्र लाइसेंस और पांच कारतूस बरामद हुए।
इस गिरफ्तारी ने पूरे गिरोह का राज खोल दिया। आगे की जांच में पता चला कि ज्ञान चंद अंबेडकरनगर के अकबरपुर में स्थित अवध गन हाउस से कारतूस खरीदता था। गन हाउस के मालिक सुखी लाल वर्मा और उनके क्लर्क विकास कुमार को भी पकड़ा गया। इसके अलावा बसखारी के आर्यन यादव उर्फ शनी और हेमंत यादव उर्फ संनू को गिरफ्तार किया गया, जिनके पास से पांच जिंदा कारतूस मिले। आर्यन पर पहले से ही हत्या का केस दर्ज है। कुल मिलाकर पांच लोग हिरासत में हैं, और सभी को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया।
गिरोह का तरीका बेहद चालाकी भरा था। वे आजमगढ़ जिले के उन लोगों के फर्जी लाइसेंस का इस्तेमाल करते थे, जिन्होंने असल में लाइसेंस के लिए आवेदन तो किया था, लेकिन उनका लाइसेंस कभी जारी ही नहीं हुआ। इन लाइसेंसों से वे अवध गन हाउस से कारतूस खरीदते, कभी एक ही दिन में तीन-चार लाइसेंस इस्तेमाल कर। गन हाउस का रजिस्टर चेक करने पर पता चला कि हस्ताक्षर बदल-बदल कर खरीदारी की जाती थी। 2021 से अब तक करीब 5,000 कारतूस ऐसे खरीदे गए, जिनमें इस साल ही 800 से ज्यादा शामिल हैं। कुल मिलाकर पांच सालों में गन हाउस ने 20,522 कारतूस बेचे, लेकिन सिर्फ 5,851 खोखे कारतूस जमा हुए। बाकी हजारों कारतूस कहां गए? यही तो तस्करी का राज था। ये कारतूस न सिर्फ अंबेडकरनगर में, बल्कि गोंडा, आजमगढ़ और फैजाबाद मंडलों के अपराधियों तक पहुंचाए जाते थे। कई हत्याओं और संगीन वारदातों में इनका इस्तेमाल हुआ था।
पुलिस ने अवध गन हाउस को सील कर दिया है और उसके रजिस्टर, मोबाइल डेटा व फर्जी दस्तावेजों की छानबीन कर रही है। एसपी केशव कुमार ने बताया, “यह गिरोह फर्जी लाइसेंसों से कारतूस बेच रहा था। इस साल ही 1,000 के करीब कारतूस बिक चुके थे। हम पूरे जिले के अन्य गन हाउसों के दस्तावेजों की जांच कर रहे हैं। जांच जारी है, और जल्द ही और लोग पकड़े जाएंगे।” एसपी ने यह भी कहा कि गिरोह का नेटवर्क कई जिलों में फैला हुआ था, जो संगठित अपराध को बढ़ावा दे रहा था।
अगस्त के बाद की ताजा अपडेट्स में कोई नई गिरफ्तारी तो नहीं हुई, लेकिन पुलिस की टीम मोबाइल डेटा से नए सुराग ढूंढ रही है। यह कार्रवाई अपराध पर लगाम लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अंबेडकरनगर जैसे ग्रामीण बाहुल्य इलाकों में अवैध हथियारों की समस्या पुरानी है, जो छोटी-मोटी झड़पों से लेकर हत्याओं तक पहुंच जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे गिरोहों का पर्दाफाश लाइसेंस सिस्टम में सख्ती की जरूरत बताता है। आवेदन प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाने से फर्जीवाड़ा रुकेगा।
स्थानीय लोग इस कार्रवाई से खुश हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि इतने बड़े नेटवर्क को रोकने के लिए क्या पर्याप्त संसाधन हैं? पुलिस का दावा है कि हां, और आने वाले दिनों में और खुलासे होंगे। यह घटना उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था को मजबूत करने की चुनौतियों को उजागर करती है। फिलहाल, अंबेडकरनगर की सड़कें थोड़ी सुरक्षित महसूस कर रही हैं, लेकिन सतर्कता बरतनी होगी।