लखनऊ, 4 अक्टूबर 2025 – उत्तर प्रदेश में महर्षि वाल्मीकि जयंती अब सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं रहेगी, बल्कि एक पूर्ण सार्वजनिक अवकाश का रूप ले लेगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर राज्य सरकार ने 7 अक्टूबर को पूरे प्रदेश में छुट्टी घोषित कर दी है। इससे सरकारी कार्यालय, स्कूल, कॉलेज, बैंक और डाकघर सब बंद रहेंगे। यह फैसला शनिवार को कार्मिक विभाग के आदेश से औपचारिक हो गया, जिससे लाखों लोगों को त्योहार मनाने का पूरा मौका मिलेगा। लेकिन इसकी गहराई समझने के लिए हमें इतिहास और वर्तमान चुनौतियों पर नजर डालनी होगी, जहां पहले यह छुट्टी कभी आती जाती रही थी।
यह घोषणा कोई नई बात नहीं, बल्कि एक पुरानी मांग का पूरा होना है। साल 2025 की शुरुआती छुट्टियों की सूची में वाल्मीकि जयंती को सिर्फ निबंधित अवकाश का दर्जा मिला था, यानी कर्मचारी अपनी पसंद से छुट्टी ले सकते थे। लेकिन अब इसे सार्वजनिक अवकाश बना दिया गया है। मुख्यमंत्री ने 27 सितंबर को श्रावस्ती में एक कार्यक्रम के दौरान ही इसकी घोषणा की थी, जो वाल्मीकि जी की जन्मभूमि मानी जाती है। यह कदम खासतौर पर अनुसूचित जाति समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वाल्मीकि जी को आदि कवि के साथ साथ सामाजिक समानता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। पहले समाजवादी पार्टी की सरकार में 2013 से 2017 तक यह छुट्टी बहाल हुई थी, लेकिन उसके बाद फिर रद्द हो गई। योगी सरकार ने 2017 में सत्ता आने के बाद वादा किया था कि सांस्कृतिक और सामाजिक त्योहारों को सम्मान दिया जाएगा, और अब यह वादा पूरा हो रहा है।
महर्षि वाल्मीकि की जयंती आश्विन पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो इस साल मंगलवार को पड़ रही है। किंवदंती के अनुसार, वे एक डाकू रत्नाकर थे, जिन्हें नारद मुनि ने राम नाम का जाप सिखाया। इसी जप से उनका जीवन बदल गया और उन्होंने रामायण की रचना की। यह महाकाव्य न सिर्फ भक्ति का प्रतीक है, बल्कि जाति भेदभाव के खिलाफ एक संदेश भी देता है। वाल्मीकि जी ने लव और कुश को रामकथा सिखाई, जो आज भी अखाड़ों में गाई जाती है। यूपी जैसे राज्य में, जहां राम मंदिर आंदोलन की जड़ें हैं, यह जयंती सामाजिक सद्भाव को मजबूत करती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह त्योहार दलित सशक्तिकरण का प्रतीक बन चुका है, क्योंकि वाल्मीकि समुदाय इसे अपनी पहचान से जोड़ता है।
अवकाश के प्रभाव कई स्तरों पर दिखेंगे। छात्रों को परीक्षा तैयारी में अतिरिक्त समय मिलेगा, जबकि कर्मचारियों को बिना तनाव के पूजा अर्चना का मौका। बैंक बंद होने से लेन देन प्रभावित होगा, लेकिन डिजिटल बैंकिंग से यह समस्या कम हो जाएगी। हालांकि, कुछ गड़बड़ियां भी सामने आई हैं। आदेश देरी से जारी होने के कारण कुछ निजी संस्थानों ने पहले ही अपनी योजनाएं बना ली थीं, जिससे भ्रम की स्थिति बनी। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि अगर घोषणा पहले होती, तो बेहतर होता। इसके अलावा, निजी क्षेत्र पर यह अवकाश बाध्यकारी नहीं है, इसलिए कुछ कंपनियां आधी छुट्टी दे सकती हैं, जो असमानता पैदा कर सकता है। एक अन्य मुद्दा मौसम का है। अक्टूबर में बारिश की संभावना से रैलियां प्रभावित हो सकती हैं।
हालांकि, बैंक कर्मचारियों के लिए यह अवकाश पूरी तरह से राहत नहीं साबित हो रहा। राज्य सरकार ने भले ही 7 अक्टूबर को सार्वजनिक छुट्टी घोषित की हो, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अधिसूचना के अनुसार, यह नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (एनआई एक्ट) के तहत सूचीबद्ध नहीं है। यानी यूपी के बैंकों में सामान्य कामकाज चलेगा और कर्मचारी ड्यूटी पर रहेंगे। आरबीआई की आधिकारिक छुट्टियों की सूची में वाल्मीकि जयंती को हरियाणा, कर्नाटक जैसे राज्यों के लिए ही अवकाश माना गया है, जबकि यूपी में यह शामिल नहीं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बैंकों के बंद होने का जिक्र तो है, लेकिन आरबीआई की पुष्टि के अभाव में यह स्पष्ट नहीं। इससे बैंक कर्मचारी नाराज है। वे पूछ रहे हैं कि क्या वे जनता का हिस्सा नहीं?
सरकार ने जश्न को भव्य बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। लखनऊ, वाराणसी और श्रावस्ती में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन होगा, जहां रामायण पर नाटक और भजन होंगे। शिक्षा विभाग स्कूलों में वाल्मीकि जी पर निबंध प्रतियोगिताएं चला रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सामाजिक एकता को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है।
लोगों की प्रतिक्रिया ज्यादातर सकारात्मक है। एक्स पर एक यूजर ने लिखा कि यह समानता की दिशा में बड़ा कदम है। लेकिन कुछ लोग पूछ रहे हैं कि क्या अन्य समुदायों के त्योहारों के साथ समान व्यवहार होगा। कुल मिलाकर, यह अवकाश न सिर्फ आराम का दिन बनेगा, बल्कि वाल्मीकि जी के संदेश को जीवंत करेगा। घरों में खीर और पुड़िया बनेगी, मंदिरों में भक्ति का सैलाब उमड़ेगा। यूपी की सांस्कृतिक धरोहर एक बार फिर चमकेगी।
