दो अक्टूबर का दिन भारत के इतिहास में एक खास जगह रखता है। इसी दिन 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म हुआ था। वे देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने छोटे कद के बावजूद बड़े सपनों से भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी जयंती पर हम न सिर्फ उनकी याद ताजा करते हैं, बल्कि उनके जीवन की उन कहानियों को भी साझा करते हैं जो हमें प्रेरित करती हैं। शास्त्री जी का जीवन सादगी, देशभक्ति और मेहनत की मिसाल है। वे कभी बड़े पद की चाह में नहीं चले, बल्कि हमेशा देश की सेवा को ही अपना धर्म माना। आज हम उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी रोचक कहानियां सुनेंगे जो शायद आपने पहले न सुनी हों। ये कहानियां बताती हैं कि कैसे एक साधारण परिवार का लड़का असाधारण बन गया। आइए, उनकी जयंती पर इन किस्सों में खो जाएं और सीखें कि असली नेतृत्व क्या होता है।
बचपन और शिक्षा की अनसुनी कहानियाँ
लाल बहादुर शास्त्री जी का बचपन वैसा ही था जैसा लाखों भारतीय बच्चों का होता है। मुगलसराय के एक छोटे से घर में जन्मे नन्हे लाल को घरवाले प्यार से नन्हा कहते थे। उनके पिता की जल्दी मौत हो गई, तो मां और नाना ने उनका लालन पालन किया। लेकिन इस साधारण शुरुआत में भी कुछ ऐसी बातें थीं जो उन्हें अलग बनाती थीं। बचपन से ही वे किताबों के दीवाने थे। स्कूल जाने के लिए उन्हें रोज गंगा नदी दो बार पार करनी पड़ती। नंगे पैर, सिर पर किताबें बांधे, वे नाव का इंतजार नहीं करते थे। बस, पानी में उतर जाते और तैरते हुए पार हो जाते। किताबें गीली न हों, इसके लिए वे उन्हें कपड़े में लपेट लेते। यह देखकर लोग दंग रह जाते। एक बार तो ऐसा हुआ कि तेज बहाव में वे बहने लगे, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। तट पर पहुंचकर बोले, पढ़ाई का रास्ता कभी आसान नहीं होता।
शिक्षा के मामले में भी उनकी जिद काबिले तारीफ थी। काशी विद्यापीठ में पढ़ते समय वे गरीबी के बावजूद कभी पीछे नहीं हटे। 1925 में स्नातक होने पर उन्हें शास्त्री की उपाधि मिली। उनका असली सरनेम श्रीवास्तव था, लेकिन वे जाति प्रथा के खिलाफ थे। उन्होंने सोचा, क्यों न इस उपाधि को अपना नाम बना लूं। बस, लाल बहादुर श्रीवास्तव से लाल बहादुर शास्त्री हो गए। यह फैसला उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था। वे कहते थे कि नाम से ज्यादा काम मायने रखता है। बचपन की ये कहानियां बताती हैं कि मेहनत और हिम्मत से कोई भी मंजिल हासिल की जा सकती है। आज के बच्चे अगर ये सुनें तो शायद अपनी मुश्किलों को हंसकर पार करें। शास्त्री जी की ये शुरुआती जद्दोजहद हमें याद दिलाती है कि बड़े लोग भी छोटे कदमों से ही आगे बढ़ते हैं। उनकी जिंदगी की ये झलकियां हमें प्रेरित करती रहेंगी।
स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान की रोचक घटनाएँ
स्वतंत्रता की लड़ाई में लाल बहादुर शास्त्री जी ने कम उम्र से ही कूद पड़ दिया। महज 16 साल की उम्र में वे असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। स्कूल छोड़ दिया, क्योंकि ब्रिटिश शिक्षा को वे गुलामी का प्रतीक मानते थे। काशी विद्यापीठ में गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने सत्याग्रह का रास्ता अपनाया। जेल जाने का सिलसिला शुरू हो गया। कुल नौ बार जेल हुई, लेकिन हर बार वे और मजबूत होकर निकले। एक बार जेल में रहते हुए उन्हें पता चला कि परिवार को 50 रुपये की पेंशन मिल रही है। पत्नी ललिता जी ने कहा कि 10 रुपये बच जाते हैं। शास्त्री जी ने तुरंत पेंशन 40 रुपये करवा दी। बोले, अगर 40 में गुजारा चल रहा है तो 50 क्यों लें। बचे पैसे जरूरतमंदों को दे दो। यह उनकी ईमानदारी की पहली मिसाल थी।
एक और रोचक घटना है 1930 के नमक सत्याग्रह की। शास्त्री जी ने गोरखपुर में नमक कानून तोड़ा। ब्रिटिश अफसरों ने उन्हें पकड़ लिया, लेकिन वे डरे नहीं। जेल में उन्होंने कैदियों को पढ़ाया, संगठित किया। बाहर आकर ट्रेड यूनियन मूवमेंट में कूद पड़े। मजदूरों के हक के लिए आवाज उठाई। एक बार रेल हादसे के बाद रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। कहा, गलती मेरी है, चाहे पद कुछ भी हो। ये घटनाएं दिखाती हैं कि शास्त्री जी सिर्फ नारे नहीं लगाते थे, बल्कि बलिदान देते थे। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान हमें सिखाता है कि असली आजादी संघर्ष से आती है। आज जब हम आजाद भारत में सांस लेते हैं, तो शास्त्री जी की ये कहानियां हमें गर्व से भर देती हैं। वे कहते थे, देश के लिए जेल जाना शर्म नहीं, सम्मान है।
सादगी और ईमानदारी की मिसालें
लाल बहादुर शास्त्री जी की सादगी ऐसी थी कि लोग उन्हें देखकर सोचते, ये प्रधानमंत्री हैं या कोई आम आदमी। एक बार गृहमंत्री रहते कलकत्ता में फंस गए। एयरपोर्ट जाने में देरी हो रही थी। पुलिस कमिश्नर ने सायरन वाली गाड़ी भेजने को कहा। लेकिन शास्त्री जी ने मना कर दिया। बोले, मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं। भीड़ में ही चलूंगा। इसी तरह, उत्तर प्रदेश के मंत्री रहते प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज के बजाय वॉटर कैनन का इस्तेमाल शुरू करवाया। कहा, हिंसा से हिंसा नहीं रुकेगी। महिलाओं को बस कंडक्टर बनाने का श्रेय भी इन्हें जाता है।
परिवार में भी सादगी झलकती थी। शादी के समय ससुराल वालों ने दहेज देने की कोशिश की। लेकिन शास्त्री जी ने सिर्फ एक खादी की धोती ली। बाकी सब मना कर दिया। कहा, दहेज समाज का कलंक है। एक बार बेटे को नौकरी में जल्दी प्रमोशन मिल गया। शास्त्री जी को पता चला तो तुरंत रुकवा दिया। बोले, मेरे नाम का फायदा मत उठाओ। ईमानदारी उनके खून में थी। जेल से लौटकर पेंशन की बात हो, या राशन कार्ड के लिए लाइन लगाना, हर जगह वे आम इंसान बने रहे। ये मिसालें बताती हैं कि पद की ऊंचाई से ज्यादा इंसान की ऊंचाई उसके चरित्र से होती है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में शास्त्री जी की ये कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि सादा जीवन ही उच्च विचार लाता है। वे कभी दिखावे में नहीं पड़े, बस सेवा में लगे रहे।
प्रधानमंत्री काल की यादगार कहानियाँ
1964 में जब जवाहरलाल नेहरू जी का निधन हुआ, तो शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन उनके पास न घर था, न कार। परिवार ने फिएट कार खरीदी, कीमत 12 हजार रुपये। बैंक में सात हजार थे, बाकी पांच हजार लोन लिया। ताशकंद में उनकी अचानक मौत हो गई, लोन बाकी था। पत्नी ललिता जी ने पेंशन से चुकाया। एक बार राज्य दौरे पर जाना था, लेकिन रद्द हो गया। मुख्यमंत्री ने कहा, फर्स्ट क्लास की व्यवस्था है। शास्त्री जी बोले, थर्ड क्लास आदमी के लिए फर्स्ट क्लास क्यों।
1965 का भारत पाक युद्ध उनकी अग्निपरीक्षा था। पाकिस्तान ने उनकी हाइट का मजाक उड़ाया, लेकिन शास्त्री जी ने जवाब हथियारों से दिया। जय जवान जय किसान का नारा दिया। खाद्य संकट में खुद परिवार को एक वक्त का खाना करने को कहा। पूरे देश से अपील की, सप्ताह में एक दिन उपवास रखो। रेस्तरां बंद करवाए। एक बार सरकारी गाड़ी का परिवार ने इस्तेमाल किया। शास्त्री जी ने पूरा किराया सरकारी खजाने में जमा करवा दिया। कहा, गाड़ी देश की है, निजी काम के लिए नहीं। ताशकंद समझौते के बाद उनकी मौत रहस्य बनी रही, लेकिन उनका योगदान अमर है। ये कहानियां दिखाती हैं कि शास्त्री जी ने छोटे समय में बड़ा काम किया। वे कहते थे, देश पहले, परिवार बाद में। उनकी जयंती पर ये यादें हमें एकजुट होने की सीख देती हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
उत्तर: उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था।
प्रश्न 2: जय जवान जय किसान का नारा किसने दिया?
उत्तर: लाल बहादुर शास्त्री जी ने 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान यह नारा दिया था।
प्रश्न 3: शास्त्री जी ने कितनी बार जेल यात्रा की?
उत्तर: उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कुल नौ बार जेल की सजा काटी।
प्रश्न 4: शास्त्री जी की मौत कैसे हुई?
उत्तर: 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई, जो आज भी रहस्यमयी मानी जाती है।
प्रश्न 5: शास्त्री जी को कौन सा सम्मान मिला?
उत्तर: उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
